Saturday, August 25, 2012

ढाई आखर


-यशोधरा यादव "यशो"

ढाई आखर प्रेम का बिकता है बाजार
लोक काम के दाम से करते हैं व्यापार
करत हैं व्यापार बनाया खेल तमाशा
कहीं बन गया जाम, कहीं पर बना समौसा
कहे "यशो" वक्तव्य  हवा पश्चिम की आकर
मुन्नी झण्डू बाम बनी, भूली ढाई आखर

-यशोधरा यादव "यशो"

भाव जगत का सार


-यशोधरा यादव "यशो"

भाव जगत का सार है शब्द रूप का मूल
भाव बिना कब रह सका, मन हिय के अनुकूल
मन हिय के अनुकूल, भाव ही प्रेम घृणा है
भाव बिना ये जीवन केवल मृगतृष्णा है
कहे "यशो" वक्तव्य हुआ है जब से प्रेम अभाव
तब से धुँधले हो गये, सच्चे मन के भाव।

-यशोधरा यादव "यशो"

लेखन कला अनन्त


-यशोधरा यादव "यशो"

लेखन कला अनन्त है मन का सत्य प्रकाश
चली अनवरत लेखनी, छू लेती आकाश
छू लेती आकाश, हृदय भी पावन करती
वह मन का उद्गार, सभी के सम्मुख रखती
कहे "यशो" वक्तव्य करें, नित परहित चिन्तन
सत्य की परिधि साधि, करें कविता का लेखन।

-यशोधरा यादव "यशो"

पथ


-यशोधरा यादव "यशो"

दूरगामी पथ अपरिचित,
पर कदम रुकते नहीं
मुक्त अहसासों के पंथी
बन्ध में बंधते नहीं।

रेस के घोड़े-सी सरपट,
जिन्दगी की दौड़ में
आपके दामन से कोई,
ख्वाब क्यों सजते नहीं।

भाव का मैं शब्द हूँ,
जो अर्थ का पैगाम है,
प्यार सम्वेदित ह्रदय में,
छलकपट रुकते नहीं।

याद की बुढ़िया सिरहाने,
सूत-सा बुनती रही,
इक नवेली आस के,
बढ़तो कदम रुकते नहीं।

एक अच्छी सी कहानी,
और सकरी सी गली,
कल्पना के लोक में वह,
घूमते थमते नहीं।


एक अनबूझी पहेली,
आज इतराने लगी,
दिल की उलझन बन गई,
वह समझ सकते नहीं।



-यशोधरा यादव "यशो"

आओ यदुकुल सूर्य


-यशोधरा यादव "यशो"

कर्म पर लग गया, अधिकार का पहरा,
आओ यदुकुल सूर्य फिर से, टेरती तुमको धरा,

क्षुद्र अन्तर्द्वन्द्व कैसा, बँध गया हर श्वास में,
घात ही लगने लगा अब, प्यार के विश्वास में।
आ जगत डँसने लगी हैं, भ्रष्टता की व्यालियाँ,
तोड़ डाली हैं घ्रणा ने, म्रदुलता की डालियाँ,
सत्य के संदर्भ में है, झूठ का कचरा,
आओ यदुकुल सूर्य फिर से, टेरती तुमको धरा।

भटकते नैपथ्य में अब, भावना के प्राण,
गिरगिटी पहने मुखौटे, आज हर इंसान
नजर आती हर तरफ, नैराश्य की राहें,
पाप अत्याचार नित, फैला रहा बाहें
नजर आता हर तरफ, दुःशासानी चेहरा,
आओ यदुकुल सूर्य फिर से, टेरती तुमको धरा।

छोड़कर कर्तव्य धामा, अधिकृती दामन,
हो गया कैसा विषैला, कंस का शासन,
अब विचारों में नहीं है, क्रान्ति की झंकार,
लूटती कलुषित हवाएँ, प्रकृति का शृंगार
छा गए हैं गगन में, विषरस भरे बदरा,
आओ यदुकुल सूर्य फिर से, टेरती तुमको धरा।

छल कपट की चल रहा है, चाल दुर्यौधन,
मोह में फँस कर्म भूला, आज का अर्जुन,
आज हो कुरुक्षेत्र में, गीता का अभिसिंचन,
राधिका मधुवन पुकारे, आओ नंद नन्दन,
मन मयूरी पंख का सिर, बाँध कर सेहरा,
आओ यदुकुल सूर्य फिर से, टेरती तुमको धरा।

-यशोधरा यादव "यशो"

हर क्षण


-यशोधरा यादव "यशो"

जब भी ये मन व्याकुल होता है
किसी की तलाश में
तब न जाने कौन आ जाता है
मेरे ख्वाबों में
और शान्त कर देता है
धधकती ज्वाला को
अपने होने का अहसास देकर
उसकी अनन्तता में मैं
भूल जाती हूँ अपना अपनापन
और जीवन चलने लगता है
फिर उसी की तलाश में
जो छिपा हुआ है कण-कण में
सा रहता है मेरे हर क्षण ।

 -यशोधरा यादव "यशो"

तुम्हारी चाह में



-यशोधरा यादव "यशो"


ये सच है कि दर्द
बना देता है दिल को दरिया
मगर कभी-कभी जीवन
जब बढ़ने लगता
अनजान क्षितिज की ओर
अनजान राह की भाँति
मंजिल की तलाश में
तब ध्यान आता है तुम्हारी शक्ति का
जो अद्भुत है, अनंत है
शाश्वत है, सुन्दर है
मेरी आत्मा भावविभोर हो जाती है
तुम्हारी चाह में।

-यशोधरा यादव "यशो"

Tuesday, August 21, 2012

बाँसुरी


-यशोधरा यादव यशो
मुनि मन अगम अधर कृपा सिंधु धरि
दिव्य प्रेम भक्ति की आधार भई बाँसुरी
ड़ीझे गोपी ग्वाल जड़ चेतन की सुधि नाँहि
बृज की निकुंज सत्य सार भई बाँसुरी
जसुदा को लाड़ जानें नन्द को दुलार पायो
राधा बल्लभ कान्हा की शृंगार भई बाँसुरी
देह गेह नेह में चमकि घन दामिनि सी
तृष्णा हटाय रसधार भई बाँसुरी ।।


बागन की डारन पै बगरै बसन्त जब
मन भाय पिया की पुकार भई बाँसुरी
रंग की बौछारन कौ हियरा में घोरि घोरि
फागुन में बृज कौ खुमार भई बाँसुरी
इन्द्र देव दर्प भरि गोकृल में ढायो कहर
गिरि कूँ गहाय गिरिधार भई बाँसुरी
पाप अत्याचार कौ वसुन्धरा में राज देखि
क्रूर काल कंस कूँ कटार भई बाँसुरी ।।

कौरवी सभा में ठाड़ी द्रोपदी की टेर सुनि
शक्ति नारी रूप कौ अवतार भई बाँसुरी
रण में भ्रमित कुन्ती पुत्र कूँ गहायो ज्ञान
कर्म धर्म न्याय की जयकार भई बाँसुरी
निर्गुन सगुन ब्रह्म शेष अरु महेश जामें
रूप साँचो स्याम कौ साकार भई बाँसुरी ।।

-यशोधरा यादव 'यशो'

Monday, August 13, 2012

बरसात के बाद

-यशोधरा यादव "यशो"




ओ अलि छोड़ो ये आलिंगन
बाँधो ना मुझसे ये बंधन
देख प्रकृति की छटा मनोहर
जोड़ सकूँ मैं टूटे बन्धन।

देखो वृक्षों की शाखायें
पूर्ण तृप्त हो नाच रही हैं
देखो काँसों के झुंडों में
शसक जोड़ियाँ खेल रही हैं
कई दिनों से भूखे पक्षी
खाकर भोजन करते गुंजन।

पहली किरण सूर्य की फूटी
सजग हुई स्मृतियाँ टूटी
पोर-पोर चमका वसुधा का
वह रिमझिम बरसात भी टूटी
और किया है आज सूर्य ने
आकर के धरणी का चुम्बन ।

जन-जन हर्षित और प्रफुल्लित
होता है मेरा मन मुकलित
देख छटा मन सिहर उठा है
एक सपन हो उठा सचलित
फिर से चला काम पर मानव
जैसे जाता था दिन प्रतिदिन ।

आज प्रकृति के इन भावों ने
कैसे मुझको बाँध रखा है
पर न टूटी घुटन हृदय की
बहु विधि से इसको परखा है
आओ तोड़ें दर्द घुटन को
नई प्रीति का करे सृजन ।

-यशोधरा यादव "यशो"

Saturday, June 9, 2012

अहसास का दरिया


-यशोधरा यादव 

शब्द भाव अहसास का दरिया
प्रिय तुम मेरे गीत रुपहले
चमकेगा सूरज प्रभात का
लेकिन काली रात है पहले

माँझी ने पतवार चलाई
नदिया में तूफान उठा था
नाव किनारे तो पहुँचेगी
लेकिन झंझावात है पहले

आज शिकायत क्यों गैरों से
अपनों का व्यवहार बेगाना
कर अन्तर्मन का अवलोकन
दुनिया को सौगात दे पहले

दीपशिखा यादों की जलती
हृदय भाव बाती बन जाते
प्रियवर सुरमयी राग बनेगा
शब्दों की बरसात हो पहले

बिटिया बनी पराया धन क्यों
अपने घर में बेगानापन
सुरभित करे पिया का घर तो
लेकिन तेरा गात है पहले

उड़ जानी है नील गगन पर
मिट्टी ही तो अपना तन है
पीछे हर पल मौत खड़ी पर
जीवन का संगीत है पहले

" यशो " प्यार से प्यार मिलेगा
मन की द्वेष घृणा को तजकर
एक राह मंजिल का हमदम
हृदय छिपा जज़्वात है पहले