-यशोधरा यादव यशो
मुनि मन अगम अधर कृपा सिंधु धरिदिव्य प्रेम भक्ति की आधार भई बाँसुरी
ड़ीझे गोपी ग्वाल जड़ चेतन की सुधि नाँहि
बृज की निकुंज सत्य सार भई बाँसुरी
जसुदा को लाड़ जानें नन्द को दुलार पायो
राधा बल्लभ कान्हा की शृंगार भई बाँसुरी
देह गेह नेह में चमकि घन दामिनि सी
तृष्णा हटाय रसधार भई बाँसुरी ।।
बागन की डारन पै बगरै बसन्त जब
मन भाय पिया की पुकार भई बाँसुरी
रंग की बौछारन कौ हियरा में घोरि घोरि
फागुन में बृज कौ खुमार भई बाँसुरी
इन्द्र देव दर्प भरि गोकृल में ढायो कहर
गिरि कूँ गहाय गिरिधार भई बाँसुरी
पाप अत्याचार कौ वसुन्धरा में राज देखि
क्रूर काल कंस कूँ कटार भई बाँसुरी ।।
शक्ति नारी रूप कौ अवतार भई बाँसुरी
रण में भ्रमित कुन्ती पुत्र कूँ गहायो ज्ञान
कर्म धर्म न्याय की जयकार भई बाँसुरी
निर्गुन सगुन ब्रह्म शेष अरु महेश जामें
रूप साँचो स्याम कौ साकार भई बाँसुरी ।।
रण में भ्रमित कुन्ती पुत्र कूँ गहायो ज्ञान
कर्म धर्म न्याय की जयकार भई बाँसुरी
निर्गुन सगुन ब्रह्म शेष अरु महेश जामें
रूप साँचो स्याम कौ साकार भई बाँसुरी ।।
-यशोधरा यादव 'यशो'
यशोधरा जी बाँसुरी पर बहुत सुन्दर कविता आपने लिखी है
ReplyDelete-अनूप सिंह