डूबकर भावों मे मेरे
शब्द का अहसास है
ये मेरी कविता शिशिर में
धूप का अहसास है
जब कभी आशा का पंछी
गगन में उड़ने चला
और मन उद्विग्न हो
द्रुतवेग से चलने चला
रोककर उसकी गति को
राह बतलाने लगी
छोड़ कर छल दम्भ तृष्णा
सत्य बतलाने लगी
पतझरी उजड़े चमन में
प्यार का मधुमास है
ये मेरी.........
ताप दे संघर्ष लौ का
कनक-सा उज्ज्वल किया
इसने हर इक मोड़ पर
मुझको नया सम्बल दिया
टहनियों पर पात बन
फल फूल की जननी है तू
और रिश्तों की डगर पर
प्यार की भगिनी है तू
मेरे उर की कसमकश में
बाँधती विश्वास है
ये मेरी......
मन मुड़ेरीपन की पंछी
अप्सरा सुरलोक की
दामिनी सी दमक जाती
सहचरी आलोक की
जेठ में शीतल पवन है
सावनी बौछार है
इस प्रभंजित जिंदगी में
आत्मसुख का सार है
कल्पना के लोक की तू
क्षितिज है आकाश है.
ये मेरी......
नव शिशु की माँ की लोरी
ममतापूरित छाँव है
तू ही परियों की कहानी
और मेरा गाँव है
रात की तू चाँदनी है
प्रातः की पहली किरन
राज की हमराज है तू
प्रगति का पहला चरन
कवि के मन मन्दिर की तुलसी
औषधि का स्वांस है
ये मेरी.....
. -यशोधरा यादव 'यशो'
शब्द का अहसास है
ये मेरी कविता शिशिर में
धूप का अहसास है
जब कभी आशा का पंछी
गगन में उड़ने चला
और मन उद्विग्न हो
द्रुतवेग से चलने चला
रोककर उसकी गति को
राह बतलाने लगी
छोड़ कर छल दम्भ तृष्णा
सत्य बतलाने लगी
पतझरी उजड़े चमन में
प्यार का मधुमास है
ये मेरी.........
ताप दे संघर्ष लौ का
कनक-सा उज्ज्वल किया
इसने हर इक मोड़ पर
मुझको नया सम्बल दिया
टहनियों पर पात बन
फल फूल की जननी है तू
और रिश्तों की डगर पर
प्यार की भगिनी है तू
मेरे उर की कसमकश में
बाँधती विश्वास है
ये मेरी......
मन मुड़ेरीपन की पंछी
अप्सरा सुरलोक की
दामिनी सी दमक जाती
सहचरी आलोक की
जेठ में शीतल पवन है
सावनी बौछार है
इस प्रभंजित जिंदगी में
आत्मसुख का सार है
कल्पना के लोक की तू
क्षितिज है आकाश है.
ये मेरी......
नव शिशु की माँ की लोरी
ममतापूरित छाँव है
तू ही परियों की कहानी
और मेरा गाँव है
रात की तू चाँदनी है
प्रातः की पहली किरन
राज की हमराज है तू
प्रगति का पहला चरन
कवि के मन मन्दिर की तुलसी
औषधि का स्वांस है
ये मेरी.....
. -यशोधरा यादव 'यशो'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शाबाश टीम इंडिया !! “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत प्यारी है कविता
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