Monday, February 25, 2013

मुझको सुख मिलता है


-यशोधरा यादव यशो

मैं नन्हें पौधों को सींचूँ, मुझको सुख मिलता है
जग की सकल वेदना पीलूँ, मुझको सुख मिलता है।

नन्हें पौधों में जीवन की आस भरी होती है
अभिलाषा की नई चमक की चाह नई होती है
उनकी नन्हीं अभिलाषा को मैं सम्बल दे दूँ तो
नेही-नीर पिलाकर उनको मैं अभिभूत करूँ तो
बज उठती है मन की सरगम हृदय द्वार खुलता है
मैं नन्हें पौधों को सींचूँ, मुझको सुख मिलता है।

तेज धूप में गरम सड़क पर नंगे पाँव न चलना
मन अवसाद ग्रस्त हो तो फिर पर-पीड़ा ले चलना
अन्तःसुख की गरमाहट में चिर आनन्द बिचरता
पर क्यों मानव पल-पल अपने दुःख से आहें भरता
अन्तर्मन का भाव हमेशा यही प्रश्न करता है
मैं नन्हें पौधों को सींचूँ, मुझको सुख मिलता है।

लेकर के सतरंगी सपने, बचपन की अँगड़ाई
अधरों में स्पंदन भरती सहज खिले तरुणाई
नव आयाम लक्ष्य हो पथ का मुश्किल एक खिलौना
पोषित लाड़-प्यार का आँचल बीते वक्त सलोना
मुक्त हँसी में बिखरे मोती दिल दर्पण बनता है
मैं नन्हें पौधों को सींचूँ, मुझको सुख मिलता है।

बचपन निश्छल कपट रहित ईश्वरीय सुगबुगाहट है
सभी वेदना दूर हटाता, खुशियों की आहट है
धागा बन सम्बंध जोड़ता, बना धार की रेखा
सहृदयता का पाठ हमेशा देता हमें अनोखा
खाली पुस्तक के पन्नों पर नया शब्द रचता है
मैं नन्हें पौधों को सींचूँ, मुझको सुख मिलता है।

-यशोधरा यादव यशो

5 comments:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - आर्यभट्ट जयंती - गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, वैज्ञानिक (४७६-५५० ईस्वी ) पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  2. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (दिनांक २५ अप्रैल २०१३, बृहस्पतिवार) ब्लॉग बुलेटिन - डर लगता है पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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