Wednesday, March 2, 2011

जीवन तो सूना उपवन है

जीवन तो सूना उपवन है,
कोई फूल खिले तो कैसे
तड़प कशिश से बोझिल है,
मन का मीत मिले तो कैसे !

एक किरण शहजादी मलिका
दूर खड़ी मुस्करा रही है
पर है मन में गहन अँधेरा
इसको दूर करें तो कैसे !

मन हर क्षण क्षण ढ़ूँढ़ रहा है
हर दर्पण में छवि तुम्हारी
एक प्रभंजित द्वंद उठा नित
अब संगीत मिले तो कैसे !

मत समझाओ मुझे गीत की
प्रिय लहरी की मधुर पंक्तियाँ
जब है मन ही भक्ति परिन्दा
तो फिर जीत मिले तो कैसे !
जीवन एक पहेली बनकर
मुझसे उत्तर पूछ रहा है
द्वंदों का सैलाब उमड़ता
उत्तर उचित मिले तो कैसे !
मूक बधिर बन बैठी भाषा
क्षीण हो चुकी शक्ति सत्य की
भँवर पड़े अहसास नदी में
गति से नाव चले तो कैसे !


-यशोधरा यादव 'यशो'


2 comments:

  1. मूक बधिर बन बैठी भाषा
    क्षीण हो चुकी शक्ति सत्य की
    भँवर पड़े अहसास नदी में
    गति से नाव चले तो कैसे !
    बहुत सुंदर

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  2. "जीवन एक पहेली बनकर
    मुझसे उत्तर पूछ रहा है
    द्वंदों का सैलाब उमड़ता
    उत्तर उचित मिले तो कैसे!"

    सुंदर गीत के माध्यम से मनोभावों की प्रभावी प्रस्तुति

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