मैं फड़
पंख फड़फड़ाते थकी
समझी
बहुत उड़ चुकी
मगर
मैं वहीं थी पिजड़े में बंद
चारों तरफ वही था मेरे लिए
कुछ भी नया नहीं
मैं पाती रही वेदना
जीवित रही कहीं
मरती तो रही बेमौत
दहेज की ज्वाला में
तो कहीं कुचल दिया
मेरी भावनाओं को
लड़की होने पर
झूठे ढकोसलों ने
और मैं बंद हूँ अब तक
उसी पिंजड़े में
जिसमें बंद थी सदियों पूर्व
-यशोधरा यादव 'यशो'
पंख फड़फड़ाते थकी
समझी
बहुत उड़ चुकी
मगर
मैं वहीं थी पिजड़े में बंद
चारों तरफ वही था मेरे लिए
कुछ भी नया नहीं
मैं पाती रही वेदना
जीवित रही कहीं
मरती तो रही बेमौत
दहेज की ज्वाला में
तो कहीं कुचल दिया
मेरी भावनाओं को
लड़की होने पर
झूठे ढकोसलों ने
और मैं बंद हूँ अब तक
उसी पिंजड़े में
जिसमें बंद थी सदियों पूर्व
-यशोधरा यादव 'यशो'
"कुचल दिया
ReplyDeleteमेरी भावनाओं को
लड़की होने पर"
मार्मिक प्रस्तुति