जीवन तो सूना उपवन है,
कोई फूल खिले तो कैसे
तड़प कशिश से बोझिल है,
मन का मीत मिले तो कैसे !
एक किरण शहजादी मलिका
दूर खड़ी मुस्करा रही है
पर है मन में गहन अँधेरा
इसको दूर करें तो कैसे !
मन हर क्षण क्षण ढ़ूँढ़ रहा है
हर दर्पण में छवि तुम्हारी
एक प्रभंजित द्वंद उठा नित
अब संगीत मिले तो कैसे !
मत समझाओ मुझे गीत की
प्रिय लहरी की मधुर पंक्तियाँ
जब है मन ही भक्ति परिन्दा
तो फिर जीत मिले तो कैसे !
जीवन एक पहेली बनकर
मुझसे उत्तर पूछ रहा है
द्वंदों का सैलाब उमड़ता
उत्तर उचित मिले तो कैसे !
मूक बधिर बन बैठी भाषा
क्षीण हो चुकी शक्ति सत्य की
भँवर पड़े अहसास नदी में
गति से नाव चले तो कैसे !
-यशोधरा यादव 'यशो'
मूक बधिर बन बैठी भाषा
ReplyDeleteक्षीण हो चुकी शक्ति सत्य की
भँवर पड़े अहसास नदी में
गति से नाव चले तो कैसे !
बहुत सुंदर
"जीवन एक पहेली बनकर
ReplyDeleteमुझसे उत्तर पूछ रहा है
द्वंदों का सैलाब उमड़ता
उत्तर उचित मिले तो कैसे!"
सुंदर गीत के माध्यम से मनोभावों की प्रभावी प्रस्तुति