Saturday, November 7, 2020

वृंदावन


कर नंद नंदन का आराधन।
मन मेरे बन जा  वृंदावन।।

जिसका कण-कण कान्हा बोले,
मुरली की धुन अमृत घोले,
वृषभानु दुलारी के संग- संग,
जीवन की जड़ता हो चेतन।
मन मेरे बन जा वृंदावन।

कल कल यमुना का हो प्रवाह
अब शेष न कोई बचे चाह,
राधा के पग के घुंघरू बन,
जो बजते हैं छन छन छन छन।
मन मेरे  बन जा वृंदावन ।

दधि रस से भरी गगरिया बन,
कान्हा की सखी गुजरिया बन,
गैया, बछड़ा, ग्वाला बन जा,
बन लकुटि कमरिया या मधुबन।

मन मेरे  बन जा वृंदावन ।
मुरली की मोहक धुन बन जा,
तू बांके की चितवन बन जा,
तू ऋषि मुनियों की भक्ति बन,
बन युगल छवि का सम्मोहन।
मन मेरे बन जा वृंदावन ।

तू मोर मुकुट प्रभु का बन जा,
या गोवर्धन पर्वत बन जा,
यशोदा मैया का प्यार भरा,
बन जा मीठा-मीठा मक्खन।
मन मेरे बन जा वृंदावन।

जिसे शेष महेश गणेश भजें,
ऋषि नारद संत समेत भजें,
उनके चरणन की धूरि 'यशो'
धरि शीश करे वंदन वंदन।
कर नंद नंदन का आराधन।
मन मेरे बन जा वृंदावन।।

-यशोधरा यादव 'यशो'

No comments:

Post a Comment