Saturday, June 2, 2012

छोड़ गई आँगन




मेरे आँगन में फुदकती
कल आ गई गौरैया
बीन-बीन कर खाने लगी
बिखरा हुआ दाना
सारी दुनियादारी से
थी मुक्त वह
सिर्फ अपनी उदरपूर्ति में मग्न
ले जा रही थी
अपने बच्चों के लिए दाना
उसे क्या मालूम एक आँख
जो उसे घूर रही है
देखकर उसे
एक नए मनोविकार ने जन्म लिया
पकड़ कर पिंजड़े में
बन्द कर लूँ इसे
प्रदर्शनी में ले जाऊँ इसे
जिससे हो जाएगी
मेरी कमाई
और ज़रूरतों की
हो जाएगी भरपाई
कितना पापी है मन
नहीं देख सका
उसे उछल-कूद करते हुए
कर लेना चाहा उसे
अपनी कैद में
पकड़ते हुए थक गए हाथ
उड़ गई गौरैया
हमेशा के लिए
छोड़ गई वह
मेरा आँगन
अब नहीं आती
पड़ा हुआ दाना चुगने
उसको डर है
अपने कैद होने का।


-यशोधरा यादव "यशो"

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