Thursday, March 3, 2011

पिजड़े में बंद

मैं फड़
पंख फड़फड़ाते थकी
समझी
बहुत उड़ चुकी
मगर
मैं वहीं थी पिजड़े में बंद
चारों तरफ वही था मेरे लिए
कुछ भी नया नहीं
मैं पाती रही वेदना
जीवित रही कहीं
मरती तो रही बेमौत
दहेज की ज्वाला में
तो कहीं कुचल दिया
मेरी भावनाओं को
लड़की होने पर
झूठे ढकोसलों ने
और मैं बंद हूँ अब तक
उसी पिंजड़े में
जिसमें बंद थी सदियों पूर्व


-यशोधरा यादव 'यशो'

1 comment:

  1. "कुचल दिया
    मेरी भावनाओं को
    लड़की होने पर"

    मार्मिक प्रस्तुति

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