Tuesday, February 22, 2011

छूट गई तेरी पगडंडी

खतरे से परिपूर्ण ज़िन्दगी
दिखा रहे हम इसको झंडी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी
बिलख रही है माँ की ममता
प्यार पिता का तरस रहा है
तोड़ दिए सम्बंध हृदय के
नीर नयन से बरस रहा है।
मानवता हो रही तिरस्कृत
मन प्रतिपल हो रहा घमंडी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी ।।


तुझको पता नहीं ये जीवन

किस साँचे में ढाल गया तू
जिसमें खुदगर्जी बेकारी
कासा तोता पाल गया तू
साथ घृणा नफरत का आलम
भैंस उसी की जिसकी डंडी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी ।।

बिखरी महज सियासत मग में
नित घायल कर रही सत्यता
छूट गया पुरुषार्थ तुम्हारा
दृष्टिपात हो रही भीरुता
धुआँधार बढ़ रही भृष्टता
आह भरें आशाएँ ठण्डी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी ।।

अन्तहीन नभ में फिरती हैं
शासन सत्ता की बुनियादें
मँडराई पाश्चात्य सभ्यता
भूला वैदिकता की यादें
दीर्घ लघु हर प्रश्न हमारा
बनता राजनीति की मण्डी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी ।।

बज्रकीर्ति विज्ञान हमारा
कदम कदम गतिशील रहा है
तीव्र ताप से त्रस्त धरा है
प्रकृति नटी को लील रहा है
अनियन्त्रित निष्ठुर परिवर्तन
नाचे रूप धरे शतचण्डी
दौड़ रहा किस पथ पर मानव
छूट गई तेरी पगडंडी ।।


-यशोधरा यादव

2 comments:

  1. ज़िंदगी की सच्चाई बयान karne वली की arthpurna कविता

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  2. आज के इंसान और उसकी इंसानियत को आयना दिखाती अप्रतिम प्रस्तुति - बहुत बहुत बधाई

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