वक्त के थपेड़े बदल देते हैं विचारों को
हर डगर पर धक्के मिलते हैं बेचारों को ।
शोहरत और दौलत बड़े वक्त की बात है
दो वक्त रोटी मिलती रहे लाचारों को ।
अपनों के ज़ख्म ही तो छलनी कर देते हैं
ए रव बताओ क्या कहें बेगानो को ।
दर्द की दास्तान ने हृदय झकझोर दिया
सोचें, पर कैसे लड़ें अपने अधिकारों को ।
दीपक की लौ सतह पर अँधेरा दे
कैसे कहें हम शुक्रिया उजालों को ।
ए "यशो" ज़िन्दगी गुमनाम ही तो है
पर कैसे दवाएँ हम दिल की पुकारों को ।
-यशोधरा यादव "यशो"
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